संस्कृति समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों का समग्र रूप : प्रो ढोंडियाल

पिथौरागढ़। लक्ष्मण सिंह महर परिसर के वेब हाल में “हमारा समाज, हमारी संस्कृति, हमारी पहचान” विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में में समाज- संस्कृत और भाषा के विविध स्वरूपों पर विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई। शनिवार को परिसर के वेब हॉल में आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए विशिष्ट अतिथि सोबन सिंह जीना विवि की पूर्व शिक्षा संकाय अध्यक्ष व शिक्षाविद प्रो विजयारानी ढोंडियाल ने कहा कि संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों का समग्र रूप होता है, जो समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने, खाने-पीने, बोलने, नृत्य, गायन, साहित्य, कला, वास्तु आदि में परिलक्षित होता है। संस्कृति का वर्तमान रूप किसी समाज के दीर्घकाल तक अपनाई गई पद्धतियों का परिणाम होता है। वहीं मुख्य अतिथि परिसर निदेशक डॉ हेम चन्द्र पांडेय ने कहा कि, समाज विशेष के गौरवशाली इतिहास के साथ ही वर्तमान के रीति-रिवाज व परंपराओं का दर्पण होता है। जो नई पीढ़ी को समाज की विशेषताओं की जानकारी मुहैया कराता है। नई पीढ़ी को संस्कारवान व जिम्मेदार नागरिक बनाने के लिए संस्कृति का संरक्षण जरूरी है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए कार्यशाला की संयोजक डॉ संगीता पवार ने कहा कि संस्कृति से परिचित कराने के लिए सांस्कृतिक संस्थाओं का गठन जरूरी है। इन संस्थाओं के माध्यम से अपनी बोली, रीति-रिवाज, वेशभूषा व खान-पान की जानकारी युवाओं को मुहैया कराई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि संस्कृति समाज और भाषा तीनों मिलकर देश की तरक्की में अमूल्य योगदान देते हैं। तकनीकी सत्र के बाद वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो वीआर ढोंडियाल, डॉ संगीता पवार व प्रकाश चंद्र भट्ट ने वंचितों की सामाजिक सांस्कृतिक एवं भाषाई पहचान पर चर्चा की। इस दौरान डॉ भावना पांडेय, डॉ कौशल किशोर बिजल्वाण, डॉ अर्जुन सिंह जगेड़ा आदि मौजूद रहे। कार्यशाला में बीएड प्रशिक्षु, एनसीसी के कैडेट्स, एनएनएस के वॉलिंटियर समेत परिसर के छात्र-छात्र मौजूद रहे।