राज्य के सभी पर्वतीय शहरों की धारण क्षमता की जांच प्रक्रिया शुरू

देहरादून। राज्य के पर्वतीय शहरों की मजबूती, धारण क्षमता (कैरिंग कैपिसिटी) की जांच की प्रक्रिया शुरू हो गई। भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र-यूएलएमएमसी विशेषज्ञ सर्वे एजेंसियों की मदद से शहरों की भूमि और पहाड़ों की संरचनाओं का सर्वेक्षण शुरू करने जा रहा है।
आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास सचिव डॉ. रंजीत कुमार सिन्हा के अनुसार यूएलएमएमसी ने एजेंसियों के चयन के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी है। प्रथम चरण में राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों के करीब 15 शहरों का भूगर्भीय सर्वेक्षण किया जाएगा।
शुक्रवार को सचिवालय में मीडिया कर्मियों से अनौपचारिक बातचीत में डॉ. सिन्हा ने कहा कि एजेंसियों के चयन के बाद जल्द से जल्द सर्वे आरंभ कर दिया जाएगा। मालूम हो कि जोशीमठ में भूधंसाव के बाद सरकार ने सभी पर्वतीय शहरों की कैरिंग कैपिसिटी की जांच करने का निर्णय किया है। सीएम पुष्कर धामी ने आपदा प्रबंधन विभाग को इसके निर्देश दिए थे।

पहाड़ों में निर्माण-नियोजन की सिफारिश भी करेगा सर्वे
शहरों की सर्वेक्षण रिपोर्ट में जहां जमीन और पहाड़ की भूगर्भीय संरचना का सर्वे होगा। वहीं उसकी कैरिंग कैपिसिटी के आधार पर वहां निर्माण और नियोजन के लिए सरकार को स्पष्ट सुझाव भी दिए जाएंगे। आपदा प्रबंधन सचिव के अनुसार पहाड़ और मैदान की परिस्तियां भिन्न भिन्न होती हैं। इसलिए निर्माण के जो मानक मैदान में लागू हैं, वो पहाड़ों में नहीं हो सकते। सर्वेक्षण के आधार पर क्षेत्रवार निर्माण के मानकों पर भी सुझाव दिए जाएंगे।

ये हैं प्रस्तावित शहर
1.गढ़वाल मंडल: गोपेश्वर, कर्णप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी, पौड़ी,लैंसडौन, मसूरी
2.कुमाऊं मंडल: नैनीताल, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, भवाली, रानीखेत, कपकोट, धारचूला, चंपावत

शहरों पर लगातार बढ़ रहा है दबाव
राज्य के शहरों पर लगातार दबाव बढ़ रहा है। हालिया कुछ वर्षों में पर्वतीय शहरों का काफी विस्तार हुआ है और यह क्रम लगातार जारी है। भूगोलविद प्रो. बीआर पंत बताते है हर क्षेत्र की अपनी एक विशिष्ट भौगोलिक संरचना होती है। निर्माण को अधिकतम झेलने की एक क्षमता होती है। यदि समय रहते पर्वतीय क्षेत्रों में अनियोजित विस्तार पर रोक न लगी तो काफी घातक परिणाम देखने पड़ सकते हैं।