अल्मोड़ा। अल्मोड़ा प्लस एप्रोच फाउंडेशन, नई दिल्ली के सहयोग से इस बार ग्राम धामस में 1 अप्रैल को ओण दिवस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में पिछले डेढ़ दशकों से स्याही देवी शीतलाखेत क्षेत्र में जंगलों को आग से सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली महिलाओं तथा आग बुझाने में सहयोग करने वाले प्रथम पंक्ति के फायर फायटर्स को प्लस एप्रोच फाउंडेशन नई दिल्ली द्वारा सम्मानित भी किया जायेगा। इस कार्यक्रम के आयोजन में ग्रामोद्योग विकास संस्थान, ढैंली, गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयन पर्यावरण संस्थान, कटारमल, नौला फाउंडेशन तथा जंगल के दोस्त समूह भी सहयोग कर रहे है।
इसकी जानकारी देते हुए गजेंद्र कुमार पाठक ने दी। शिखर होटल में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा कि पिछले दो दशकों से उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों के जंगलों में हर साल गर्मियों में होने वाली वनाग्नि दुर्घटनाओं से जल स्रोतों, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को अपूर्णनीय क्षति हुई है। कोसी,गगास, रामगंगा और सुयाल जैसी गैर हिमानी नदियों और उन्हें जलापूर्ति करने वाले गाड़, गधेरों और धारों में जल स्तर में लगातार हो रही गिरावट का मुख्य कारण इनके जलागम क्षेत्रों में वनाग्नि की घटनाओं से जमीन के ऊपर की घास, वनस्पति और पेड़ों की पत्तियों के सूखने, सड़ने से पैदा ह्यूमस की बेहद महत्वपूर्ण परत,जो वर्षा जल को भूजल में बदलने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है,का वनाग्नि से नष्ट होना है। लगातार हो रही वनाग्नि घटनाओं से वन्य जीवों के आहार और आवास दोनों नष्ट हो रहे हैं और खाद्य श्रृंखला टूट रही है जिसका परिणाम निरंतर बढ़ रहे मानव वन्य जीव संघर्ष के रूप में देखा जा सकता है। वनाग्नि घटनाओं से पैदा लाखों टन कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में जाकर ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रही हैं साथ ही जंगलों की आग से पैदा ब्लैक कार्बन हिमालयी ग्लेशियरों के लिए भी खतरा बन रहा है।
यदि हमें वर्तमान पीढ़ी और आने वाली पीढ़ियों के अच्छे भविष्य के लिए जल स्त्रोतों, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करनी है तो सर्वप्रथम वनाग्नि दुर्घटनाओं को रोकने के प्रयास करने की जरूरत है। वनाग्नि दुर्घटनाओं के लिए बहुत से कारण उत्तरदाई हैं मगर इन कारणों में से सबसे ज्यादा योगदान ओण/आडा़/केडा़ जलाने की परंपरा का है।
खरीफ की फसलों के लिए खेत तैयार करते समय महिलाओं द्वारा खेतों में, मेड़ में उग आई झाड़ियों, खरपतवारों को काटकर, सुखाकर जलाया जाता है जिसे प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में ओण/आड़ा/केड़ा जलाना कहा जाता है।
आमतौर पर महिलाएं इस काम में सतर्कता रखती हैं मगर की बार लापरवाही, जल्दबाजी में ओण के ढेर को जलाने के बाद अच्छी तरह बुझाने का काम न होने से हवाओं और घास, पीरूल का सहारा लेकर आग निकटवर्ती वन पंचायत, सिविल, आरक्षित वन क्षेत्र में प्रवेश कर बड़ी अग्नि दुर्घटनाओं को जन्म देती हैं। जंगलों में आग लगने के 90% मामलों के पीछे ओण जलाने की घटनाओं में असावधानी पायी गई है।
एक बार आग आरंभ हो गई तो उस पर नियंत्रण पाने में बहुत समय और संसाधन लगाने पड़ते हैं ऐसे में यह उचित होगा कि आग लगे ही ना इस बात के प्रयास किए जायें इस उद्देश्य को लेकर ओण जलाने की परंपरा को समयबद्ध और व्यवस्थित करने हेतु पिछले वर्ष ग्राम सभा मटीला/ सूरी में 1 अप्रैल को प्रथम ओण दिवस का आयोजन किया गया। जिसके अच्छे परिणामों को देखते हुए जिलाधिकारी अल्मोड़ा ने अल्मोड़ा जिले में प्रतिवर्ष एक अप्रैल को ओण दिवस मनाने के आदेश दिए थे और इस वर्ष दूसरा ओण दिवस मनाया जा रहा हैं।
ओण दिवस जंगलों को आग से सुरक्षित रखने का निरोधात्मक विचार है जिसमें सभी ग्राम वासियों से अनुरोध किया गया है कि वो प्रत्येक वर्ष ओण जलाने की कार्रवाई 31 मार्च से पहले पूरी कर लें ताकि अप्रैल,मई और जून के महीनों में जब चीड़ में पतझड़ होने के कारण जंगलों में भारी मात्रा में पीरूल की पत्तियों जमा हो जाती हैं तापमान में वृद्धि होने तथा तेज हवाओं के कारण जंगल आग के प्रति बेहद संवेदनशील हो जाते हैं,उस समय जंगलों को आग से सुरक्षित रखा जा सके। ओण दिवस का उद्देश्य जंगलों को आग से बचाकर उत्तराखंड के जल स्त्रोतों, जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित एवं संवर्धित करना है।
इस बार के ओण दिवस कार्यक्रम का आयोजन प्लस एप्रोच फाउंडेशन के सहयोग से किया जा रहा है। प्लस एप्रोच फाउंडेशन के बारे में जानकारी देते हुए इसके कॉर्डिनेटर मनोज सनवाल ने बताया कि प्लस एप्रोच फाउंडेशन एक पंजीकृत गैर सरकारी संगठन है जो समाज में सकारात्मक सोच के साथ लोगों की प्रगति, समृद्धि और शांति के लिए काम कर रहा है ताकि सभी को खुशी मिल सके और सभी सफल हों।
प्लस एप्रोच फाउंडेशन डा आशुतोष कर्नाटक के मार्गदर्शन में काम कर रहा है। डाक्टर आशुतोष कर्नाटक अल्मोड़ा के मूल निवासी हैं और वर्तमान में दिल्ली में कार्यरत हैं श्री कर्नाटक गेल के सी एम डी के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।
प्लस एप्रोच फाउंडेशन ने शीतलाखेत के पास मटीला गांव को गोद लिया है और इसे सशक्त, सकारात्मक और आत्मनिर्भर गांव बनाने के रुप में परिवर्तित करने के लिए काम किया जा रहा है।इस गांव में बच्चों के शैक्षणिक विकास के लिए रेमेडियल क्लासेज, कंप्यूटर क्लासेज का संचालन किया जा रहा है। महिलाओं के लिए सिलाई कढ़ाई प्रशिक्षण केन्द्र खोला गया है। इसके अलावा बेहद गरीब परिवारों के लिए विदुषी विवाह कन्यादान तथा सपनों का घर योजना चलाई जा रही है।
प्रेस वार्ता में ऑर्गेनिक्स इंडिया के सेवानिवृत्त निदेशक आरडी जोशी, जंगल के दोस्त के नरेंद्र बिष्ट, नवीन टम्टा साथ में मौजूद रहे।