विद्युत नियामक आयोग ने ऊर्जा निगमों के प्रबंध निदेशकों के अधिकार घटाए

देहरादून(आरएनएस)। उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग ने ऊर्जा के तीनों निगम मैनेजमेंट के अधिकार घटा दिए हैं। खासतौर पर प्रबंध निदेशकों के अधिकार सीमित किए गए हैं। प्रबंध निदेशक सिर्फ पांच करोड़ तक के कार्यों को ही मंजूरी दे सकेंगे। इससे अधिक के कार्यों के लिए विद्युत नियामक आयोग में निगम बोर्ड की मंजूरी दिखानी होगी। निगमों की ओर से इस पर आपत्ति भी जताई गई है। निगमों का तर्क है कि जब उनका बोर्ड ही प्रबंध निदेशकों को 20 करोड़ तक के कार्यों का अधिकार दे चुका है, तो नियामक आयोग का पांच करोड़ से अधिक के कार्यों के लिए बोर्ड की मंजूरी लेने के नियम का कोई औचित्य नहीं है। क्योंकि नियामक आयोग जो बोर्ड से मंजूरी मांग रहा है, वो बोर्ड पहले ही एमडी को दे चुका है। ऐसे में पांच करोड़ से अधिक के कार्यों को फिर बोर्ड में ले जाकर मंजूरी लेने से सिर्फ समय खराब होगा। इसका असर योजनाओं की समय सीमा पर पड़ेगा। समय बढ़ने पर योजना की लागत भी बढ़ेगी।
पिछले दिनों विद्युत नियामक आयोग में मल्टी ईयर टैरिफ की सुनवाई के दौरान यूजेवीएनएल की ओर से आपत्ति भी जताई गई थी। यूजेवीएनएल का तर्क है कि कई बार तत्काल में जरूरी काम कराने होते हैं। उन कामों के लिए यदि बोर्ड से लेकर आयोग की मंजूरी का इंतजार करना होगा तो पॉवर प्लांट को नुकसान पहुंच सकता है। प्रबंध निदेशकों को 20 करोड़ तक के अधिकार बोर्ड ने ही दिए हैं, तो क्यों पांच करोड़ की कैप रखी जा रही है।

योजनाओं की मंजूरी में लगने वाले समय पर भी उठाए सवाल
निगमों की सभी योजनाओं के टेंडर तब तक नहीं हो सकते हैं, जब तक की उन योजनाओं की डीपीआर को विद्युत नियामक आयोग की मंजूरी न मिल जाए। निगमों के मैनेजमेंट की शिकायत है कि आयोग को डीपीआर भेजने के बाद भी आठ आठ महीने तक मंजूरी नहीं मिलती। जब तक मंजूरी नहीं मिलती, तब तक टेंडर नहीं हो सकते। मंजूरी मिलने के बाद टेंडर करने से लेकर वर्क अवार्ड होने में भी लंबा समय लगता है। इसका सीधा असर योजनाओं की प्रगति, समय सीमा और लागत पर पड़ रही है। जबकि इन योजनाओं को निगमों के बोर्ड तक अपनी मंजूरी दे चुके होते हैं। शिड्यूल ऑफ रेट तक बोर्ड मंजूर कर चुके होते हैं। इसके बाद भी एसओआर तक आयोग में मंगाई जा रही हैं।

आयोग ने जो भी व्यवस्थाएं दी हैं, वो एक्ट के अनुसार ही दी हैं। निगमों के बोर्ड ने एमडी को क्या अधिकार दिए हैं, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आयोग एक्ट के अनुसार ही काम करता है। निगमों की डीपीआर में भी सिर्फ रेट जांच जाते हैं। अधिक समय नहीं लगाया जाता है।   – एमएल प्रसाद, कार्यवाहक अध्यक्ष विद्युत नियामक आयोग