दान की राशि के ऑडिट, व्यवस्थाओं को लेकर उठाए हैं सवाल

अल्मोड़ा। जागेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति में व्याप्त कथित अव्यवस्थाओं को दूर करने से संबंधित जनहित याचिका (पीआईएल) नैनीताल हाईकोर्ट में गुरुवार को दाखिल हुई है। याचिका में समिति का सीएजी ऑडिट, आरटीआई के दायरे में सूचना उपलब्ध कराने सहित कई बिंदुओं को न्यायालय के सम्मुख उठाया गया है।
याचिका में उत्तराखंड सरकार, डीएम अल्मोड़ा, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, एएसआई के निदेशक और मुख्य पुजारी को पक्षकार बनाया गया है। जागेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति का गठन नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर 2013 में हुआ था। अखबार में प्रकाशित खबर का हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर जागेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति का गठन किया था, ताकि इसमें पारदर्शिता लाई जा सके। पांच सदस्यीय समिति के पदेन अध्यक्ष जिलाधिकारी अल्मोड़ा होते हैं। क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी भी इस संस्था में एक सदस्य नामित हैं। समिति में उपाध्यक्ष (अवैतनिक) और प्रबंधक (वैतनिक) का चयन राज्यपाल करते हैं। पंजीकृत पुजारी मतदान के जरिए पुजारी प्रतिनिधि का चयन करते हैं। उपाध्यक्ष, प्रबंधक और पुजारी प्रतिनिधि का कार्यकाल तीन साल निर्धारित होता है। मंदिर प्रबंधन समिति में प्रबंधक का पद करीब 15 माह से खाली चल रहा है। साथ ही उपाध्यक्ष का पद भी करीब चार माह से रिक्त चल रहा है। इसके अलावा पुजारी प्रतिनिधि का कार्यकाल भी पूरा हो चुका है। मंदिर समिति में राजनैतिक दखल के आरोप भी समय-समय पर लगते रहते हैं। बोर्ड बैठक में प्रस्ताव पास होने के बाद भी मंदिर समिति सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में अब तक नहीं आ पाई है। जिला प्रशासन भी सरकारी स्तर से इस समिति से संबंधित आरटीआई नहीं दे रहा है। इसी को लेकर आज एक पीआईएल याचिकाकर्ता वरिष्ठ पत्रकार रमेश जोशी ने हाईकोर्ट की डिवीजन ब्रांच में दाखिल कराई है। पीआईएल अधिवक्ता विनोद तिवारी, अधिवक्ता प्रभाकर जोशी और अधिवक्ता रक्षित जोशी के माध्यम से दाखिल की गई है।

गठन से अब तक नहीं हुआ सीएजी ऑडिट
गठन के समय हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को जागेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति का ऑडिट नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी ) से कराने को कहा था, लेकिन अब तक एक बार भी ऑडिट नहीं हो पाया है। प्रबंधक तीन साल का कार्यकाल पूरा होने पर अपने स्तर से सीए का चयन कर उन्हीं से ऑडिट कराते आए हैं। समिति में उपाध्यक्ष के अधिकार भी नियम विरूद्ध तरीके से सरकारी अफसरों को सौंप दिए गए हैं। इसी के चलते लोग अब उपाध्यक्ष पद पर आवेदन को दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।