अल्मोड़ा। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान में हिमालयी क्षेत्र की स्थिरता, जलवायु लचीलापन, जैव–विविधता संरक्षण, आपदा जोखिम न्यूनीकरण, स्वदेशी ज्ञान, हरित ऊर्जा और सतत पर्यटन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर केंद्रित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन शनिवार को सम्पन्न हो गया। सम्मेलन में देशभर के शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों, सरकारी विभागों और समुदाय विशेषज्ञों ने हिमालयी चुनौतियों तथा समाधान आधारित शोध को नीति और व्यवहार से जोड़ने पर विस्तृत चर्चा की। विविध सत्रों में शोधकर्ताओं ने वायु प्रदूषण और एरोसोल के प्रभाव, ‘वेस्ट टू एनर्जी’ मॉडल, ग्लेशियल बैक्टीरिया आधारित जैव–उपचारण तकनीक, वन बायोमास की एआई आधारित मैपिंग, पारंपरिक बीजों के संरक्षण, कृषि–जैव विविधता में गिरावट, पारिस्थितिक जोखिम मानचित्रण और पीटलैंड की कार्बन संग्रहण क्षमता जैसे व्यावहारिक विषयों पर नवीनतम शोध प्रस्तुत किए। विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि हिमालयी स्थिरता के लिए स्वदेशी ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का संयोजन अनिवार्य है। सतत पर्यटन विषयक सत्र में लोकप्रिय स्थलों पर दबाव कम करने, गाँव–स्तर पर पर्यटन को बढ़ावा देने, भूटान मॉडल की तर्ज पर हाई वैल्यू–लो इम्पैक्ट’ पर्यटन अपनाने और हिमालयन टूरिज्म कंसोर्टियम जैसी क्षेत्रीय पहल को आगे बढ़ाने की जरूरत रेखांकित की गई। तीसरे दिन ‘कनेक्टिंग साइंस–पॉलिसी–प्रैक्टिस’ शीर्षक से आयोजित समापन सत्र में सभी सत्रों का सार प्रस्तुत किया गया। संस्थान के निदेशक आई.डी. भट्ट ने साझा डाटाबेस विकसित करने, शोध सिफारिशों को नीति में जोड़ने और हिमालयी शोध के लिए समर्पित जर्नल प्रकाशित करने की आवश्यकता बताई। विशिष्ट अतिथि लक्ष्मीकांत ने कृषि भूमि को उद्योग हेतु न बदले जाने पर जोर दिया, जबकि अतिथि–सम्मानित हेम पांडे ने कहा कि हिमालय संरक्षण हेतु नियमित पैन–हिमालयी सम्मेलन, पर्यावरण–हितैषी निर्माण और प्रभावी क्रियान्वयन अत्यंत आवश्यक है। संयुक्त सचिव नमिता प्रसाद ने सहयोगी ढाँचों को मजबूत करने और युवा शोधकर्ताओं को मार्गदर्शन तंत्र से जोड़ने की वकालत की। मुख्य अतिथि अजय वर्मा ने हिमालय संरक्षण में जन–जागरूकता और सामूहिक जिम्मेदारी को सर्वोपरि बताते हुए कहा कि वैज्ञानिक शोध तभी सार्थक होगा जब उसे समाज तक पहुँचाया जाए। सम्मेलन का समापन डॉ. के. चंद्रशेखर द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ।