नई दिल्ली (आरएनएस)। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि कई देशों ने किशोरों के लिए शारीरिक संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र कम कर दी है और अब समय आ गया है कि हमारा देश भी दुनिया भर में होने वाली घटनाओं से अवगत हो, क्योंकि कई किशोरों पर मुकदमा चलाया जा रहा है। नाबालिग लड़कियों के साथ सहमति से संबंध बनाए रखने के लिए जेल भेजा गया है। जस्टिस भारती डांगरे की सिंगल जज की बेंच ने कहा, पॉस्को एक्ट विपरीत लिंग के प्रति प्राकृतिक भावनाओं को नहीं रोक सकता है, विशेष रूप से किशोरों में बायोलॉजिकल और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों के कारण। इसलिए एक नाबालिग लडक़े को एक नाबालिग लडक़ी के साथ संबंध बनाने के लिए दंडित करना बच्चे के हित के खिलाफ होगा।
जस्टिस डांगरे ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि समय के साथ, भारत में विभिन्न कानूनों द्वारा सहमति की आयु में वृद्धि की गई है और इसे 1940 से 2012 तक 16 वर्ष तक बनाए रखा गया। तब पॉस्को एक्ट ने इसे बढ़ाकर 18 वर्ष कर दिया था। उन्होंने कहा, यह संभवत: विश्व स्तर पर सहमति की सबसे ज्यादा आयु में से एक है, क्योंकि अधिकांश देशों ने सहमति की आयु 14 से 16 वर्ष के बीच निर्धारित की है। कोर्ट ने कहा, जर्मनी, इटली, पुर्तगाल, हंगरी आदि देशों में 14 साल की उम्र के बच्चों को सेक्स के लिए सहमति देने के लिए सक्षम माना जाता है। उन्होंने कहा कि इंग्लैंड और वेल्स और यहां तक कि बांग्लादेश और श्रीलंका में भी सहमति की उम्र तय की गई है जोकि16 वर्ष है। जापान में यह 13 साल है।
कोर्ट ने आगे कहा कि जहां तक भारत का सवाल है, बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अनुसार पुरुष और महिला के लिए विवाह की आयु क्रमश: 21 और 18 वर्ष तय की गई है। बच्चे शब्द की परिभाषा कानून के अनुसार अलग- अलग होती है। कानून और पॉक्सो एक्ट के अनुसार, 18 वर्ष से कम उम्र के किशोर को बच्चा माना जाता है और यह उनके साथ सभी यौन गतिविधियों को अपराध मानता है, भले ही यह सहमति से किया गया हो। बेंच ने जोर देकर कहा कि सहमति की उम्र को शादी की उम्र से अलग किया जाना चाहिए, क्योंकि यौन कृत्य केवल शादी के दायरे में नहीं होते हैं और न केवल समाज, बल्कि न्यायिक सिस्टम को भी इस महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान देना चाहिए।
जस्टिस डांगरे वडाला के एंटोप हिल इलाके के एक 32 वर्षीय दर्जी द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रहे थे, जिसे 21 फरवरी, 2019 को एक विशेष पॉस्को (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) अदालत ने नाबालिग के साथ सहमति से संबंध बनाने पर सजा सुनाई थी। उस समय दर्जी की उम्र लगभग 25 वर्ष थी और लडक़ी की उम्र लगभग साढ़े 17 वर्ष थी। बाद में दोनों ने शादी कर ली और लडक़ी ने ट्रायल कोर्ट के सामने दोहराया कि उनका रिश्ता सहमति से बना था, लेकिन पॉस्को कोर्ट ने दर्जी को दोषी ठहराया और उसे 10 साल की सजा सुनाई, क्योंकि लडक़ी तकनीकी रूप से नाबालिग थी। जस्टिस डांगरे ने कहा कि जब कोई किशोर यौन संबंध बनाता है तो शारीरिक आकर्षण या मोह का मामला हमेशा सामने आता है और यह जरूरी है कि हमारा देश दुनिया भर में जो कुछ भी हो रहा है उस पर नजर रखे।