परमार्थ निकेतन गंगा तट पर पांच दिवसीय नानी बाई का मायरा का शुभारम्भ

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन गंगा तट पर प्रसिद्ध कथा व्यास जया किशोरी जी के श्री मुख से नानी बाई का मायरा दिव्य कथा का शुभारम्भ हुआ। राजस्थान सहित भारत के विभिन्न राज्यों से आये श्रद्धालुओं इस दिव्य कथा का रसपान कर रहे हैं। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कथा के दिव्य मंच से भक्ति, भाव, समर्पण और प्रेम का संदेश देते हुये कहा कि माँ गंगा के पावन तट पर एक रस गंगा प्रवाहित हो रही है। ये प्रसंग व ये दृश्य अद्भुत है। जीवन में हमें बहुत कुछ जीने व जानने को मिलता है, बहुत सारे लोग भी मिलते हैं उसमें कुछ पल, कुछ एहसास ऐसे होते हैं जो सदा के लिये हमारे दिलों में रह जाते हैं। गंगा के पावन तट पर आज आप जो जी रहे हैं वह पल बड़े ही दिव्य पल है। स्वामी जी ने कहा कि प्रभु कृपा से जीवन की यात्रा बड़ी ही प्यारी व दिव्यमय हो जाती है। जीवन की यात्रा बड़ी अद्भुत होती है और यह तो वह धरती है जिसने पूरे विश्व को विश्वमंगल के सूत्र दिये है। ये वह धरती है जिससे वसुधैव कुटुम्बकम् के स्वर उत्पन्न हुये है। यह वह धरती है जहां पर हिमालय व गंगा जी की पवित्रता से पूरे विश्व को कुछ ऐसे मिला जिसकी उसे तलाश है। स्वामी जी ने कहा कि भारत की भूमि, भारत की माटी व भारत के रिश्ते अद्भुत है और इसका एहसास भी अनोखा है इसलिये इन रिश्तों को बनाये रखे यह बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि अपने बच्चों को कार देने में कोई समस्या नहीं है परन्तु उन्हें कार मिले या न मिले लेकिन संस्कार जरूर मिलने चाहिये यह बहुत जरूरी है। ये जो संस्कारों की यात्रा है यह बहुत जरूरी है। संस्कारों होने पर ही जीवन किसी के काम आ सकता है। हम धनवान बनें परन्तु धर्मवान भी बनें। उन्होंने कहा कि जिनके दिल में सत्य है, प्रेम है, करूणा है वहीं धनवान है और यह आता है इन दिव्य कथाओं और सत्संग से। स्वामी जी ने कहा कि हमें वस्त्रों पर नहीं बल्कि विचारों पर ध्यान देना होगा। धन को धर्म में लगाये, जीवन को धर्म में लगाये यही सच्ची पूंजी है।
सुश्री जया किशोरी जी ने आज की कथा में प्रसंग सुनाया कि नरसीजी अपना सबकुछ दान करने के बाद जब साधु-संतों के साथ तीर्थयात्रा कर रहे थे। इस बीच उनकी मुलाकात कुछ याचकों से हुई। वे उनसे धन, भोजन और जीवन के लिए जरूरी चीजें मांगने लगे। नरसी जी अपना सर्वस्व पहले ही दान कर ही चुके थे, इसलिए वे धन देने में समर्थ नहीं थे। आखिरकार उन्हें एक उपाय सूझा, वे एक साहूकार के पास गए और अपनी मूंछ का एक बाल उसके पास गिरवी रख उसके बदले प्राप्त पूरा धन याचकों को दे दिया। इस घटना को जब एक व्यक्ति ने देखा तो उसे लालच हो गया। वह भी इसी तरीके से धन पाने की लालसा लिए उसी साहूकार के पास गया और मूंछ की बाल के बदले धन का मांग किया। साहूकार की सहमति पाने के बाद उसने मूंछ का बाल दिया, लेकिन साहूकार संतुष्ट नहीं हुआ। लोभ में वह व्यक्ति मूंछ के बाल उखाड़कर देता रहा और साहूकार कमियां निकालता रहा। आखिर में साहूकार ने कहा कि तुम्हारी मूंछ का बाल इस योग्य ही नहीं कि मैं उसे गिरवी रखकर एक फूटी कौड़ी भी दे सकूं। नरसी जी के लिए तो याचकों का अभाव ही सबसे बड़ा दर्द था इसलिए मैंने उसके मूंछ के बाल के बदले धन दे दिया। जिसमें दीन-दुखियों के लिए इतना समर्पण हो आज हम सभी के हृदय में इसी समर्पण की जरूरत है।
इस अवसर पर नरेश, ललिता, नंदकिशोर, नूतन, राहुल सिंघल, खुशबू, सागर, प्राची, प्रशन्न एवं राजस्थान से आये सम्पूर्ण गोयल परिवार ने सहभाग कर श्री कृष्ण भक्ति में डूबी अनूठी कथा कर रसपान कर रहे हैं।